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हिन्दु को कमजोर समझने बाले मुगालते में है।वे हिन्दु की सहनशीलता को कमजोरी समझते हैं।

ज्ञान कुसुम
ज्ञान कुसुम
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आजकल हिन्दु धर्म व भारत के खिलाफ बोलने की होड़ सी चल पड़ी है।पिछले 1000-1200 वर्षों से हिन्दु व हिन्दु संस्कृति के खिलाफ चल रहै अभियान अभी भी कम होने का नाम नही ले रहै है।भारतीय संस्कृति के अलाबा जो भी संस्कृतियाँ इन अभियानों के चंगुल में आयी है लगभग सभी केवल यहूदीयों को छोड़कर बाकी दुनिया से दफा ही हो गयी है और रहती भी कैसे जबकि एकजुट हो साम दाम दण्ड व भेद सभी नीतियों का प्रयोग कर लिया गया हों।लैकिन अगर भारतीय संस्कृति जिन्दा रह गयी है तो उसका सबसे बड़ा कारण है हमारी संस्कृति का  वैज्ञानिक आधार बहूत मजबूत है जो किसी भी आकृमण को झेलने के हिसाब से बनाया गया है।

लैकिन आज मैं जिस बात को कहना चाहता हूँ वह यह है कि लोगो या विरोधी जो भी यह सोचते हैं कि हिन्दु से कुछ भी कहो बर्दाश्त करता रहेगा तो यह हिन्दु बास्तव में एसा शेर है जिसकी सहन शक्ति बहुत ज्यादा है जो बहुत दिनो तक भूख भी सहन कर सकता है।पुराने उदा. भी देखे जा सकते है और हमारे इतिहास ग्रंथ उठा कर देखने से भी यह बात पता लग जाएगी कि महिषासुर,रक्त बीज,हिरण्यकशिपु आदि के उदाहरण सामने हैं कि सबका आतंक  सर से ऊपर हो गया तब ही केबल कुछ मामूली समय में हिन्दु ने अन्त कर दिया है।सीमा भी कोई चीज है ।और सब के सब कुछ न कुछ अतिरिक्त ताकत लिए हुये रहैं है जैसे रक्त बीज के तो रक्त की ही खासियत थी कि जहाँ और जितनी बूँदे उसके रक्त की बूँदे पृथ्वी पर गिरी कि बह उसके जैसे नये राक्षस पैदा कर देती थीं। कुछ लोग इसे कोरी कल्पना कहते थे लैकिन अब जवकि क्लोनिंग नाम  की खोज हो चुकी है तो यह कल्पना नही है इसे सच ही मानने को विवश हैं।और हिरण्यकशिपु को बरदान था कि न तो वह पृथ्वी पर मरेगा न आसमान पर न अस्त्र से न शस्त्र से न  न दिन में न रात  में मरेगा न ही देत्य  से न देवता से  मानव से  न पशु से मरेगा लैकिन सब जानते है उसका क्या हस्र हुआ एक हिन्दु ने ही हाँ वो बाद में ही तो हिन्दु देवता वने है जिन्है नर्सिंह कहते है ने कैसे उस राक्षस का अन्त कर दिया था दुनिया इसे याद रखे  आतंक के हाथ कितने ही लंबै क्यों न हो किन्तु इस हिन्दु रुपी समाज से कहीं भी आगे नही जा सकते है हमने हाँ हमने ही हमारे समाज ने ही सम्मिलित शक्ति जिसे दुर्गा कहते है के एक अन्य रुप नर्सिहं का रुप रखकर ही उसके सारे वरदानों से अलग नयी श्रष्ठि करके न दिन में न रात में वल्कि संध्या समय पर न मानव न ही दानव और न ही देवता न ही पशु वल्कि नर व पशु के नये रुप में उसकी मुक्ति कर दी और आतंक का अन्त कर दिया। उसी प्रकार जब रावण के आतंक से संपूर्ण समाज त्राहि त्राहि कर उठा उससे पहले नही तब एक निहत्था मानव जिसके पास अपना रहने को घर भी न था जवकि रखाने को पत्नी भी थी जो साधन विहीन था ने साधन संपन्न ही नही अतुलित बलशाली ज्ञान वान महान पण्डित त्रिकालज्ञ संपूर्ण अस्त्र शस्त्रों का ज्ञाता रावण का केवल कुछ ही समय में एसा अन्त किया कि उसका नाम लेवा व पानी देवा भी नही छोडा़ जिसके 1 लाख पुत्र व सवा लाख नाती वताए जाते हो आज उसके नाम की कोई वत्ती जलाने बाला नही बचा है। फिर आगे द्वापर मैं जरासंध,चारुण, कंस, शकुनि, दुर्योधन, व अन्यान्य अनेकों दुष्टों ने एसी स्थिति प्रकट कर दी कि लोग अपने बच्चों तक की लाशों पर अपने आँशू भी नही निकाल पाते थे ।सोचो कैसा होगा वह आतंक लैकिन तब भी केवल एसा व्यक्ति जिसके पास कुछ भी नही केवल सिवाय वजाने बाली मुरली के वो भी केवल एक छोटा सा बच्चा उस छोटे से बालक ने कैसे कंस जैसे अत्याचारी के अत्याचारों का अंत ही नही किया अपितु महाभारत का युद्ध की रचना करके सम्पूर्ण पृथ्वी से आतंक का अंत करके एक नये मानव समाज की रचना की।नये युग या कलियुग में भी अनेकानेक आकृमण इस हिंदु समाज ने झेले हैं। और समय समय पर अपनी सहनशीलता का परिचय भी दिया है।और जब आकृमण कारियों ने जब यह समझा कि अब तो हमने हिन्दु पर पूरी तरह फतह कर लिया है।तभी हिन्दु समाज ऐसी एकजुटता से कार्य करता है कि नयी शक्ति का उदय हो जाता है जिसमें संगठित रुप से सम्पूर्ण समाज का प्रतिनिधित्व होता है।चाहै महानन्द के वेटे महापदम नन्द के आतंक  व सिकंदर के आंतक की बात हो तो विष्णुगुप्त नामक गरीव वैश्य से महापण्डित व विद्वान चाण्क्य का उदय जिसने चंद्रगुप्त नामक चरित्र की उत्पत्ति नाकुछ एक व्यक्ति से कर दी थी।और महापदमनन्द नामक उस राजा जिसने जनता को सता सता कर अपने पास महा पदम  रुपया इकठ्ठा कर लिया था जो आज के समाज में प्रत्येक व्यक्ति को बाँटने पर 20000 की मात्रा में आएगा ।तो आज कल के नेता तो कितना भी पैसा क्यों न इकठ्ठा कर लें लैकिन हिन्दु के कोप से तभी तक बचे पड़े है जव तक हिन्दु क्रोधित नही हो रहा है।जब हिन्दु क्रोधित होगा तो आप लोगों को कोई भी नही बचा पाएगा क्योंकि जब तो नन्द की खुद की सेना थी अब तो  लोकतांत्रिक सेना है जिसका कार्य समाज की सुरक्षा करना है।

सिकंदर जब भारत की भूमि पर दुनिया का सम्राट बनने की लालसा पाले भारत की और रुख करने लगा तो भारत के सीमाप्रांतो के लोगों ने ही उसका एसा स्वागत सत्कार किया कि एक आध राज्य को जीतकर ही सेनिकों ने आगे बढ़ने से मना कर दिया ।और उसे भारत के नाम से ही डर लगने लगा और पीछे उल्टे कदम बापस लौट पडा़ किन्तु बाह रे भारतीय वीरो उसका दोबारा लौटते समय एसा स्वागत किया जैसा लुटेरों के वापस जाते समय किया जाता है।कि वह उस स्वागत के बाद अपनी मात्रभूमि के  भी दर्शन नही कर सका ।उसके बाद उसके सेनापति को भूत चढ़ा कि भारत को हम लूटेगे तो उसे इसका खामियाजा अपनी बैटी हमें देकर करना पड़ा तथा भारत की भूमि् से बहुत दूर जाना पड़ा।और अगले 1000 वर्षों तक भारत की भूमि की तरफ किसी ने आँख उठाकर देखने की भी हिम्मत नही पड़ी।उसके बाद शक व हूण व कुशाणों का आकृमण हुआ और इतिहास गवाह है कि इन यूनानियों,शकों ,कुशाणों व हूणो का आतंक लगभग अलग अलग 200 से 500 वर्षों तक हमने झेला इस भारत की सहन शीलता बढ़ती ही गयी है और जब तीनो के आतंक के अन्त की बात आती है तो यशोधर्मा ने केवल 3 ही वर्षों में शकों का केवल इतने ही वर्षों मे विक्रमादित्य ने हूणों का एसा सफाया कर दिया कि आज उनका नाम लेवा पानी देवा नही बचा है औऱ तो और मुसलमानों पर तो सिकन्दर का वह आकृमण इस हद तक छाप छोड़ गया है कि सैकड़ो मुसलमानो ने अपने नाम सिकन्दर ही रखे हुए है यह है सिकन्दर के आतंक का प्रभाव जो आज भी इनके उपर सर चढ़कर बोलता है।किसी आकृमण कारी का नाम अपने बच्चों का रखने का यही मतलब है कि उसका आतंक आज तक आपका पीछा कर रहा है नही तो यह यूनानी नाम है। हिन्दु समाज की अनेकता भारत पर दो नये धर्मों के उदय ने बना दी जिसके कारण चाहै भारत बैचारिक धरातल पर जरुर समृद्ध हुआ किन्तु भारत के लोगों को इस वोद्ध धर्म के उदय ने कमजोर  या शक्ति हीन ही कर दिया क्यों कि धर्म में कोई भी बुराई न होते हुये भी पाखण्ड बाद व अहिंसा को पूर्णतया न समझ कर कुछ लोग फुलक फुलक पर डोल कर ही वोद्ध बन रहै थे और उनके लिए अत्याचार का प्रतिकार करने के हिन्दु सिद्धान्त भी बुरे ही नही घृणास्पद लगने लगे।और आतंकबादियों का उत्साह बढ़ता गया।यह समझने के लिए एक उदाहरण समझे कि हिरन व शेर दोनों ही जंगली जानबर हैं किन्तु क्यों ज्यादा तर हिरनों का ही शिकार किया जाता है या बकरे को ही क्यों बलि चढा़या जाता है।जबकि आपने कोई भी उदाहरण  शेर की बलि चढ़ने का देखा हो शायद इतिहास नही मिलता है।तो इतिहास साक्षी है कि जहाँ जहाँ यह वोद्ध सम्प्रदाय के लोग रहते थे इन्हौने हिन्दु राजाओं से बैर रखते हुये यह रबैया अपना लिया कि कोई नृप होय हमें का हानी और जो भी लड़ाई में जीत जाए उसी को राजा मान लेगें हमारा धर्म तो लड़ना है ही नही तो हम तो लड़ेगै ही नही क्योंकि हमार  वुद्ध देव कह गये हैं लैकिन इन बेवकूफों ने यह नही सोचा कि सम्राट अशोक भी वौद्ध ही था लैकिन उसके राज्य की तरफ किसी ने आँख उठाकर इसलिए नही देखा क्योंकि वौद्ध बनने से पहले वह कई भयंकर लड़ाईयाँ लड़ चुका था।अतः उसकी वीरता पर किसी को शक तो था ही नही उसके कारण शत्रु डर से काँपते थे।वह अगर वौद्ध वन गया था तो क्या उसके कारनामे तो हिन्दुओं जैसे ही रहै।

लैकिन कई भारतीय वौद्ध चिन्तक जो शायद वौद्ध धर्म की ए बी सी भी नही जानते होगें बिना मतलब भारतीय समाज को कभी ब्राह्मण वैश्य क्षत्रिय व शूद्र की श्रेणी में बाँटकर और शूद्रो को किसी भी तरीके  से वौद्ध मत का अनुयायी बताकर भारतीय समाज में विघटन पैदा करते है जवकि भारत का प्रत्येक नागरिक जिसका उदगम हिंदु समाज से है एक ही पूर्वजों की संतान है।उसने अपने अपनी समझ के अनुसार सनातन, वौद्ध, या जैन या सिख्ख मत  का अनुसरण किया है।अतः कोई कितना भी क्यों न् वरगलाए किंतु हिन्दु को आपस में कोई भी विखराव को नही बढाना चाहिये।और यह बौद्ध मत पर विदेशी प्रभाव ही था जो हमारा बोद्ध समुदाय कमजोर होकर विदेशियों का प्रतिकार नही कर सका ।सभी जानते होगे कि कुशाण नरेश कनिष्क जिसने कि भारतीय समाज को विघटित करने के उद्देश्य से अपने आप को वोद्ध घोषित कर दिया औऱ खुद ने कभी हथियारों से प्रेम कम नही किया औऱ अनेको युद्ध जीते ने खूव अहिंसा का प्रचार किया तथा भारतीय जनता को भीरु वनाने के लिए यह नये प्रकार का षडयंत्र रचा और हिन्दु समाज से वोद्ध समाज के बीच दुर्भीव पैदा कर दिया  जिसके कारण ही आगे चलकर यह बौद्ध समाज विल्कुल अपने आपको अलग मानने लगा और खुद ही समाप्त हो गया किसी ब्लाग में यह भी बताऊंगा कि कैसे वौद्ध समाज समाप्त हुआ भारत से ।लैकिन आजकल के बौद्ध चिन्तक इसके लिए भी हिन्दुओ की ही दोष देते हुए देखे जाते हैं तथा इसाई व मुस्लिम विचारकों के हित साधते हुए नजर आते है हिन्दु धर्म के प्रति विद्वेष भी ये खूब फैलाते है।एक चिन्तक तो कहीं की ईट कहीं का पत्थर लगाकर बड़ी ही सुन्दर इमारत बनाने में वड़े ही माहिर है वे ज्यादा तर मैंने रफ्तार डाट काम व वेव दुनिया डाटकाम पर लिखते देखे हैं ।वे एसी हिन्दु विरोधी ग्रंथि से ग्रसित है कि उन्है किसी भी हिन्दु की कोई अच्छाई या वुराई नजर न आकर केवल औऱ केवल शूद्र व सवर्ण ही नजर आते है उन्हौंने अपनी नजर से कुछ भी देखना वंद कर दिया है।उन्हौने अभी गडकरी का वयान आने पर विवेकानन्द व सुभाष वोस को शूद्र वताते हूये संघ तक को शूद्र विरोधी वता दिया।जिन विवेकानन्द व सुभाष के नाम की महिमा से संघ का सम्पूर्ण सहित्य भरा पड़ा है।खैर प्रभु इन्है सदबुद्धि दे जिससे ये लोग देश तोड़क गतिविधियाँ छोड़कर सच्चै भारतीय बने।ये अपने ही लोग है सो इन्है केवल यह ही कहा जा सकता है कि आप लोग ठण्डे दिमाग से विचार करे कि क्यों एसा हुआ है चिन्तन व मनन करे तथा भारत माता के काम आए।विदेशियों का साथ देकर उनका मनोवल न वढ़ाए।

अव आते है आजकल के घटनाक्रम पर आजकल वो आई आई एम के नेता जी भी बहुत खतरनाक बाते कर रहैं है कोई कह रहा है कि भाग्य लक्ष्मी मंदिर में पूजा नही होगी या भारत की सरकार को यह धमकी देता है कि बंगलादेश के मुसलमानो को भारत से बाहर निकालने की  वात भी मत सोचना नही तो परिणाम भयंकर होगे तो अब इन नहेरु बंशज अगर सत्य में नहेरु  हिन्दु था तो वह अगर देख रहे हो तो देखेगे कि कितना वढ़िया निर्णय लिया था 15 अगस्त 1947 को और अगर वह खुद मुसलमान ही था तो यह उसकी करतूत थी ।जिसे झेलने को हम अपनी वेवकूफी के कारण क्योंकि आजादी के समय हमें दिखाई दे रहा था कि यह गलत हो रहा है तो क्यों हमने नयी क्रांति उसी दिन नही की थी किसी भी नेता पर इतना भरोसा करने का परिणाम यही होता है कि वो और उसका परिवार आज तक मजा ले रहै हैं भारत की जनता को वेवकूफ समझ कर।

तो इतना समझ ले आई आई एम का नेता कि न तो वह रावण है नही वह रक्तवीज और न ही सिकन्दर और न ही औरगंजैव।जब वे लोग नही बचे तो तेरी तो औकात ही क्या है भारत है यह इसे गाजर या मूली न समझे।जब हमारे कारण रावण,ऱक्त वीज,महिषासुर,शक व हूणों की संपूर्ण विरादरी का विनाश कर दिया गया तो तुम्हारी तो औकात ही क्या है।भारतीयों को धमकी देने से बाज आऔ मिस्टर

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